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ऑनलाइन प्रोग्राम

*ऑनलाइन प्रोग्राम* ✍🏽 *बिपिन कुमार चौधरी* "मैडम, छब्बीस जनवरी के प्रोग्राम का पैसा पेमेंट करवा दीजिए। "लेकिन बैंड वाले को तो छब्बीस जनवरी में विद्यालय बुलाया ही नहीं गया था। "इसमें हमारी कोई गलती नहीं है। शहर के सबसे प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल में हमारी बैंड पार्टी टीम ही पिछले बारह वर्षों से पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को प्रोग्राम करती रही है। " "अरे भाई, तुम्हें पता नहीं है कि लॉक डॉउन में प्रोग्राम कराने पर प्रतिबंध था।" "इसमें हमारी क्या गलती है ?" "बिना काम के पैसे किस बात का मांग रहे हो।" "लॉक डाउन में बच्चों के लिए स्कूल भी तो बंद रहा, फिर आप मेरे बच्चों का फीस का बिल  किस बात का भेज रहे हो ?" "वो तो ऑनलाइन क्लास हुआ है, इसलिए  फीस देना होगा।" "ठीक है, पंद्रह अगस्त का एडवांस करवा दीजिए, इस बार हमलोग भी ऑनलाइन प्रोग्राम कर देंगे...।"

कर्म का फल (लघु कथा)

*कर्म का फल (लघु कथा)* ✍🏽 *बिपिन कुमार चौधरी* "मां गुब्बारा दिला दो।" "बेटा, गुब्बारा तो कुछ देर में फुट जायेगा।" "खिलौने ही दिलवा दो।" "मेरा बेटा शेर है ना और शेर मिट्टी के खिलौने से नहीं खेलता है।" "अच्छा छोड़ो, आइस्क्रीम ही खरीद दो।" "इससे तो दांत खराब हो जाता है, बेटा।" कुछ दूर आगे बढ़ने पर "मिठाई तो दिलवा दो।" "मिठाई तो पूजा के बाद ही मिलेगा, बेटा।" एक घंटा लाइन में खड़ा रहने के बाद महिला अपने बच्चे के साथ मंदिर के गेट तक पहुंचती है।  "दक्षिणा निकालो, जजमान!" "बाबा मेरे पास सिर्फ पचास रुपए हैं।" "मां के दरबार में झूठ नहीं बोलना चाहिए।" "सच बोल रहा हूं बाबा।" "ठीक है, चल वही निकाल, वैसे भी बाबा को बिना दक्षिणा दिए, पूजा सफल नहीं होता है।" महिला एक नजर अपने बेटे की ओर देखती है। फिर हाथ जोड़ कर मां शेरावाली को देखती है। "अगले पल बाबा को अपने पल्लू से सौ रुपया निकाल कर दे देती है लेकिन मंदिर के अंदर गए बिना वापस लौट आती है।" मंदिर से कुछ दूरी पर

अनाथ जवानी 5 से 6

अनाथ जवानी 5 अब्दुल ने पूछा "भैया आज क्या काम करना है।" सुभाष बाबू ने एक लंबी सांस लेते हुए पूछा "हां, काम की बात तो मैं करना ही भूल गया। फिर तुम्हें काम की इतनी जल्दी क्या है? पहले अपने घर परिवार के बारे में तो कुछ बताओ..." जिंदगी के लंबी जद्दोजहद के बीच अब्दुल के परिवार के बारे में पहली बार किसी ने किसी अजनबी ने उससे इतनी आत्मीयता से पूछा था।  अब्दुल थोड़ा भावुक होते हुए बोला "भैया, पांच बच्चों का पिता हूं और एक पत्नी है।" अरे भाई "इतना तो तुमने उस दिन पहली मुलाकात में भी बताया था। अपने मां बाप और गांव यानी जन्मस्थान के बारे में बताओ..." इस सवाल से अब्दुल बिल्कुल ही रूआंसा होते हुए बोला। "अनाथ हूं, भैया।" मतलब हां, भैया अनाथ हूं, आखिर कोई तो होगा... बहुत लोग थे, लेकिन अब कोई नहीं और अगर हैं भी तो मुझे पता नहीं.. मैं कुछ समझा नहीं, अब तक अब्दुल के आंखों में आसूं की बूंदे आ चुकी थी। कुछ देर मौन रहने के बाद खुद को संभालते हुए बोला। मुझे बहुत ज्यादा तो याद नहीं लेकिन इतना याद है कि मेरे अब्बू एक कसाई थे। आस पड़ोस से भेड़ बकरियां खरीद कर आ

भाग 1 से 4

 *अनाथ जवानी (कहानी)* "राजू, तुम्हें अपने पापा की हालत के बारे में कुछ पता भी है।" नंदा काकी के ये शब्द लगातार राजू के कानों में गूंज रहे थे। लगभग आज से दो वर्ष पूर्व उनसे फोन पर आखरी बार राजू की बात हुई थी। फोन उठाते ही प्रणाम पापा बोलने पर आशीर्वाद की जगह उन्होंने काफी गुस्से में सवाल दागना शुरू कर दिया था। और कितना दिन लगेगा ? पापा मेरे एसएससी का रिजल्ट आने ही वाला है। वह तो कई वर्षों से आ रहा है। पापा रेलवे का एग्जाम भी बहुत अच्छा गया है। तेरा एग्जाम खराब कब जाता है ? पापा शिक्षक नियोजन का काउंसलिंग कैंप भी लगने वाला है। हां, मैं जानता हूं चुनाव आने तक उसका कुछ नहीं होगा। पापा मैं कोशिश तो कर रहा हूं। मुझे खूब पता है तू क्या कोशिश कर रहा है ? पापा तीन बार बैंक के आईबीपीएस का एग्जाम निकाल चुका हूं। इंटरव्यू के लिए कॉल नहीं आया तो क्या करूं । जहर खिला कर मार दे हम सबको... पापा ऐसे मत बोलिए। मैं आत्महत्या कर लूंगा। तू क्यों मरेगा, तेरी क्या गलती है। गलती तो मैंने किया है, जो तेरी पढ़ाई में खुद को बर्बाद कर लिया। तेरे मां के इलाज के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। जवान बेटी को कि